भाषा
भाषा भावों
को अभिव्यक्त करने का एक माध्यम है। मनुष्य पशुओं से इसलिए श्रेष्ठ है क्योंकि
उसके पास अभिव्यक्ति के लिए एक ऐसी भाषा होती है, जिसे लोग समझ सकते हैं।
भाषा
बौद्धिक क्षमता को भी अभिव्यक्त करती है।
बहुत-से
लोग वाणी और भाषा दोनों का प्रयोग एक-दूसरे के पर्यायवाची के रूप में करते हैं, परन्तु दोनों में बहुत अन्तर है।
हरलॉक ने दोनों शब्दों को निम्नलिखित रूप से स्पष्ट किया है।
(1) भाषा में
सम्प्रेषण के वे सभी साधन आते हैं, जिसमें
विचारों और भावों को प्रतीकात्मक बना दिया जाता है जिससे कि अपने विचारों और भावों
को दूसरे से अर्थपूर्ण ढंग से कहा जा सके।
(2) वाणी
भाषा का एक स्वरूप है जिसमें अर्थ को दूसरों को अभिव्यक्त करने के लिए कुछ
ध्वनियाँ या शब्द उच्चारित किए जाते हैं। ड वाणी भाषा का एक विशिष्ट ढंग है। भाषा
व्यापक सम्प्रत्यय है। वाणी, भाषा का एक
माध्यम है।
बालकों में
भाषा का विकास
बालक के
विकास के विभिन्न आयाम होते हैं। भाषा का विकास भी उन्हीं आयामों में से एक है।
भाषा को अन्य कौशलों की तरह अर्जित किया जाता है। यह अर्जन बालक के जन्म के बाद ही
प्रारम्भ हो जाता है। अनुकरण, वातावरण के
साथ अनुक्रिया तथा शारीरिक, सामाजिक
एवं मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं की पूर्ति की माँग इसमें विशेष भूमिका निभाती है।
भाषा विकास
की प्रारम्भिक अवस्था
इस अवस्था
में एक तरह से बालक ध्वन्यात्मक संकेतों से युक्त भाषा को समझने और प्रयोग करने के
लिए स्वयं को तैयार करता हुआ प्रतीत होता है जिसकी अभिव्यक्ति उसकी निम्न प्रकार
की चेष्टाओं तथा क्रियाओं के रूप में होती है
सबसे पहले
चरण के रूप में बालक जन्म लेते ही रोने, चिल्लाने
की चेष्टाएँ करता है।
रोने-चिल्लाने
की चेष्टाओं के साथ ही वह अन्य ध्वनि या आवाजें भी निकालने लगता है। ये ध्वनियाँ
पूर्णतः स्वाभाविक, स्वचालित
एवं नैसर्गिक होती हैं, इन्हें
सीखा नहीं जाता।
उपरोक्त
क्रियाओं के बाद बालकों में बड़बड़ाने की क्रियाएँ तथा चेष्टाएँ शुरू हो जाती हैं।
इस बड़बड़ाने के माध्यम से बालक स्वर तथा व्यंजन ध्वनियों के अभ्यास का अवसर पाते
हैं। वे कुछ भी दूसरों से सुनते हैं तथा जैसा उनकी समझ में आता है उसी रूप में वे
उन्हीं ध्वनियों को किसी-न-किसी रूप में दोहराते हैं। इनके द्वारा स्वरों जैसे अ, ई, उ, ऐ, इत्यादि को
व्यंजनों त, म, न, क, इत्यादि से
पहले उच्चरित किया जाता है।
हाव-भाव
तथा इशारों की भाषा भी बालकों को धीरे-धीरे समझ में आने लगती है। इस अवस्था में वे
प्राय: एक-दो स्वर-व्यंजन ध्वनियाँ निकाल कर उसकी पूर्ति अपने हाव-भाव तथा
चेष्टाओं से करते दिखाई देते हैं।
भाषा का महत्व
इच्छाओं
और आवश्यकताओं की सन्तुष्टि भाषा
व्यक्ति को अपनी आवश्यकता, इच्छा, पीड़ा अथवा मनोभाव दूसरे के समक्ष व्यक्त करने की क्षमता
प्रदान करती है जिससे दूसरा व्यक्ति सरलता से उसकी आवश्यकताओं को समझकर
तत्सम्बन्धी समाधान प्रदान करता है।
ध्यान खींचने
के लिए सभी बालक चाहते हैं कि उनकी ओर
लोग ध्यान दें इसलिए वे अभिभावकों से प्रश्न पूछकर, कोई समस्या प्रस्तुत करके तथा विभिन्न तरीकों का प्रयोग कर उनका
ध्यान अपनी ओर खींचते हैं।
सामाजिक
सम्बन्ध के लिए भाषा
के माध्यम से ही कोई व्यक्ति समाज के साथ । आपसी ताल-मेल विकसित कर पाता है। भाषा
के जरिए अपने विचारों को अभिव्यक्त कर समाज में अपनी भूमिका निर्धारित करता है।
अन्तर्मुखी बालक समाज से कम अन्त:क्रिया
करते हैं, इसलिए उनका पर्याप्त सामाजिक विकास नहीं
होता।
सामाजिक
मूल्यांकन के लिट महत्व बालक समाज
के लोगों के साथ किस तरह बात करता है? कैसे बोलता
है? इन प्रश्नों के उत्तर के माध्यम से उसका
सामाजिक मूल्यांकन होता है।
शैक्षिक
उपलब्धि के महत्व भाषा का
सम्बन्ध बौद्धिक क्षमता से है। यदि बालक अपने विचारों को भाषा के जरिए अभिव्यक्त
करने में सक्षम नहीं होता, तो इसका
अर्थ है कि उसकी शैक्षिक उपलब्धि पर्याप्त नहीं है।
दूसरों
के विचारों को प्रभावित करने के लिए जिन बच्चों की भाषा प्रिय, मधुर एवं
ओजस्वी होती है वे अपने समूह, परिवार
अथवा समाज के व्यक्तियों को प्रभावित करते हैं। लोग उन्हीं को अधिक महत्व देते हैं
जिनका भाषा व्यवहार प्रभावपूर्ण होता है।
बालकों की आयु
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बालकों का शब्द भण्डार
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जन्म से 8 माह तक
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0
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9 माह से 12 माह तक
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तीन से चार शब्द
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डेढ़ वर्ष तक
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10 या 12 शब्द
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2 वर्ष तक
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272 शब्द
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ढ़ाई वर्ष तक
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450 शब्द
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3 वर्ष तक
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1 हजार शब्द
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साढ़े तीन वर्ष तक
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1250 शब्द
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4 वर्ष तक
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1600 शब्द
|
5 वर्ष तक
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2100 शब्द
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11 वर्ष तक
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50000 शब्द
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14 वर्ष तक
|
80000 शब्द
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16 वर्ष से आगे
|
1 लाख से अधिक शब्द
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भाषा विकास के सिद्धांत
परिपक्वता का सिद्धान्त परिपक्वता का तात्पर्य है कि भाषा अवयवों एवं
स्वरों पर नियन्त्रण होना। बोलने में जिहवा, गला, तालु, होंठ, दाँत तथा स्वर यन्त्र आदि
जिम्मेदार होते हैं। इनमें किसी भी प्रकार की कमजोरी या कमी वाणी को प्रभावित करती
है। इन सभी अंगों में जब परिपक्वता होती है, तो भाषा पर नियन्त्रण होता
है और अभिव्यक्ति अच्छी होती है।
अनुबन्धन का सिद्धान्त भाषा विकास में अनुबन्धन या साहचर्य का बहुत
योगदान है। शैशवावस्था में जब बच्चे शब्द सीखते हैं, तो सीखना
अमूर्त नहीं होता है, बल्कि किसी मूर्त वस्तु से
जोड़कर उन्हें शब्दों की जानकारी दी जाती है। इसी तरह बच्चे विशिष्ट वस्तु या
व्यक्ति साहचर्य स्थापित करते हैं और अभ्यास हो जाने पर सम्बद्ध वस्तु या व्यक्ति
की उपस्थिति पर सम्बन्धित शब्द से सम्बोधित करते हैं।
अनुकरण का सिद्धान्त चैपिनीज, शलों, कर्टी तथा वैलेण्टाइन आदि मनोवैज्ञानिकों ने अनुकरण के द्वारा भाषा
सीखने पर अध्ययन किया है। इनका मत है कि बालक अपने परिवारजनों तथा साथियों की भाषा का
अनुकरण करके सीखते हैं। जैसी भाषा जिस समाज या परिवार में : बोली जाती है बच्चे
उसी भाषा को सीखते हैं। यदि बालक के समाज या परिवार में प्रयुक्त भाषा में कोई दोष
हो, तो उस बालक की भाषा में भी दोष !
चोमस्की का भाषा अर्जित करने का सिद्धान्त चोमस्की का कहना है कि
बच्चे शब्दों की निश्चित संख्या से कुछ निश्चित नियमों का अनुकरण करते हुए वाक्यों
का निर्माण करना सीख जाते हैं। इन शब्दों से नये-नये वाक्यों एवं शब्दों का
निर्माण होता है। इन वाक्यों : का निर्माण बच्चे जिन नियमों के अन्तर्गत करते हैं
उन्हें चोमस्की ने जेनेरेटिव ग्रामर की संज्ञा प्रदान की है।
भाषा विकास
को प्रभावित करने वाले कारक
स्वास्थ्य जिन बच्चों का स्वास्थ्य जितना अच्छा
होता है उनमें भाषा के विकास की गति उतनी तीव्र होती है।
बुद्धि हरलॉक के अनुसार जिन बच्चों का बौद्धिक
स्तर उच्च होता है उनमें भाषा विकास अपेक्षाकृत कम बुद्धि से अच्छा होता है। टर्मन, फिशर एवं यम्बा का मानना है कि तीव्र बुद्धि बालकों का उच्चारण
और शब्द भण्डार अधिक होता है।
सामाजिक-आर्थिक
स्थिति बालको का सामाजिक-आर्थिक स्तर भी
भाषा विकास को प्रभावित करता है। यही कारण है कि ग्रामीण क्षेत्र में पढ़ने वाले
बालकों की शाब्दिक क्षमता शहरी या अन्य पब्लिक स्कूल में पढ़ने वाले बालकों से कम
होती है।
लिंगीय
भिन्नता सामान्यत: बालिकाएँ बालकों की
अपेक्षा अधिक शुद्ध उच्चारण करती हैं, किन्तु ऐसा
प्रत्येक मामले में नहीं होता।
परिवार
का आकार छोटे परिवार में बालक की भाषा का
विकास बड़े आकार के परिवार से अच्छा होता है, क्योंकि
छोटे आकार के परिवार में माता-पिता अपने बच्चे के प्रशिक्षण में उनसे वार्तालाप के
जरिए अधिक ध्यान देते हैं।
बहुजन्म कुछ ऐसे अध्ययन हुए हैं जिनसे प्रमाणित
होता है कि यदि एक साथ अधिक सन्तानें उत्पन्न होती हैं, तो उनमें भाषा विकास विलम्ब से होता है। इसका कारण है कि बच्चे
एक-दूसरे का अनुकरण करते हैं और दोनों ही अपरिपक्व होते हैं। उदाहरण के लिए यदि एक
बच्चा गलत उच्चारण करता है तो उसी की नकल करके दूसरा भी वैसा ही उच्चारण करेगा।
द्वि-भाषावाद यदि द्वि-भाषी परिवार है, उदाहरण के लिए यदि पिता हिन्दी बोलने वाला और माँ शुद्ध
अंग्रेजी बोलने वाली हो, तो ऐसे में
बच्चों का भाषा विकास प्रभावित होता है। वे भ्रमित हो जाते हैं कि कौन-सी भाषा
सीखें?
परिपक्वता का तात्पर्य है कि भाषा अवयवों एवं
स्वरों पर नियन्त्रण होना। बोलने में जिह्वा, गला, तालु, होंठ, दाँत तथा स्वर यन्त्र आदि जिम्मेदार होते हैं इनमें किसी भी
प्रकार की कमजोरी या कमी वाणी को प्रभावित करती है। इन सभी अंगों में जब परिपक्वता
होती है, तो भाषा पर नियन्त्रण होता है और
अभिव्यक्ति अच्छीं होती है।
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